Electoral Bonds and the Make-Believe Idealist World
Electoral Bonds were brought in for reforming political funding. It wasn't perfect, but the judiciary brought it down for being less than perfect. What is going on?
This is the first post on Sant Kabir’s verses – called Dohe. I will bring more of these everyday.
बिरछा कबहूँ न फल भखै, नदी न अन्चवे नीर
परमार्थ के कारने, साधू धरा शरीर|
वृक्ष कभी भी अपना फल खुद नहीं खाता, न ही नदी कभी अपना जल पीती है| उसी प्रकार साधू संतों का जीवन दूसरों के परमार्थ और परोपकार के लिए ही होता है|
आँखों देखा घी भला, ना मुख मेला तेल ,
साधू सों झगडा भला, न साकट सों मेल
आँखों से देखा हुआ घी का दर्शन मात्र भी अच्छा होता है| परन्तु, मुख में डाला हुआ तेल भी अच्छा नहीं होता| ठीक वैसे ही, साधू जन से झगडा भी कर लेना अच्छा है| किन्तु, बुद्धि-हीन मनुष्यों से मिलना भी अनुचित होता है|
आब गया, आदर गया, नैनं गया स्नेह,
यह तीनों तब ही गए, जबहीं कहा कछु देह|
समाज में प्रतिष्ठा जाते ही, सबकी दृष्टि से आपके लिए आदर चला जाता है और उनके नैनों में (और ह्रदय में) प्रेम एवं स्नेह| पर यह तीनों – प्रथिष्ठ्ता, आदर और स्नेह – तब जातें हैं, जब आप किसी पर बोझ बन जाते हो|
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